
उत्तराखंड : अब भू माफियाओं के कब्जे में बदलता जा रहा है देवभूमि..? बाहरी कथित ताकतवर लोग अंदरूनी सपोट से कैसे खेल कर रहे हैं चौकाने वाली रिपोर्ट..बताया जा रहा है हरियाणा से आए एक भू माफिया ने देहरादून के मुख्यमंत्री कार्यालय के नजदीक जमीनों की खरीद-फरोख्त के अवैध धंधे में अपनी धाक जमा ली है। ज़मीनों की कालाबाज़ारी में माहिर ये माफिया, जो अलग-अलग इलाकों में जमीनों पर कब्जा कर कॉलोनियों और निर्माण कार्यों का संचालन कर रहा है, खुलेआम सत्ता की आड़ में कानून को नजरअंदाज कर अपने काले धंधों को अंजाम दे रहा है।
महिला पुलिसकर्मी की जमीन पर कब्जा और लाखों की ठगी
जनपद नैनीताल में हल्द्वानी के पास इस भू-माफिया ने एक रिटायर्ड महिला पुलिस कांस्टेबल की जमीन को लीज पर लिया, लेकिन उसने धोखे से उसे कब्जे में ले लिया। यही नहीं, महिला के रिटायरमेंट के दौरान मिली लाखों रुपये की रकम भी सतीश कुमार ने ठग ली। यह घटना साबित करती है कि भू माफिया किस तरह कमजोर और भोले भाले लोगों को अपनी जाल में फंसाते हैं और उनके हक को छीन लेते हैं।
सत्ता की आड़ में ब्लैकमेलिंग का खेल
ये रसूखदार भू-माफिया खुद को सत्ताधारी नेताओं का करीबी बताते हुए जमीन के मामलों में दबंगई दिखाता है। वह जमीनों पर बयाना देकर कानूनी अड़ंगे खड़े करता है और फिर मालिकों को ब्लैकमेल करता है। पीड़ित परिवार उसकी राजनीतिक पहुंच और दबदबे के सामने चुप रहने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे माफिया का मनोबल और बढ़ जाता है।
देवभूमि में बाहरी माफियाओं का बढ़ता प्रभाव
ये अकेला नहीं है, बल्कि खबरों के अनुसार बाहरी राज्यों से आए कई भू माफिया उत्तराखंड में अवैध कब्जा कर रहे हैं। उनकी करतूतों के कारण न केवल स्थानीय लोगों को भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि उत्तराखंड की शांति और पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ रहा है। ये माफिया प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय लोगों के अधिकारों और तानेबाने को खोखला कर रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी और सत्ता की शह पर सवाल
चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब कुछ मुख्यमंत्री कार्यालय के बेहद नजदीक हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशासन और सरकार इस गंभीर मामले पर चुप क्यों हैं? क्या यह सत्ता के संरक्षण का मामला है, या फिर प्रशासन की नाकामी है? इस मामले में सरकारी तंत्र की चुप्पी को लेकर बड़ा संदेह उत्पन्न हो रहा है।
सरकार की ओर से कार्रवाई कब होगी?
उत्तराखंड के लोग अब यह जानने के लिए बेताब हैं कि सरकार ऐसे भू माफियाओं के खिलाफ कब कार्रवाई करेगी। क्या देवभूमि को इन बाहरी माफियाओं के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाएगा, या प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इन पर कड़ी कार्रवाई करेगा?
उत्तराखंड की जनता को अब केवल सवाल उठाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें स्पष्ट जवाब भी चाहिए। सरकार और प्रशासन को अब सामने आकर यह स्पष्ट करना होगा कि वे किसके पक्ष में खड़े हैं—जनता के या भू माफियाओं के?